प्रतिलिपि पर पढ़ें – “”स्मृति शेष”, को प्रतिलिपि पर पढ़ें :”

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        तूने जीवन भर हर-सुख दुःख में मेरा साथ दिया था हरवंश और जब मैं इस मरणासन्न अवस्था में बिस्तर पर लेटा हूँ,सारा परिवार मेरे सामने खड़ा है फिर भी प्राण त्यागने भारी हो रहे थे। अब इस अन्तिम वक़्त में तू मेरे सामने आ गया है तो ऐसा लग रहा है कि मेरी हर मुराद पूरी हो गयी है। सच कहूँ तो अब मन में न तो कोई तृष्णा है न मलाल और न मायामोह। अपनी पूरी उम्र जी कर जा रहा हूँ अपने प्रभु के घर।
        गुड बाय,गुड बाय टु ऑल ! इतना कहकर अमीर चन्द के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान दिखायी दी और देखते ही देखते उसकी साँसें थम गयी। जिन नजरों से वह टकटकी लगाए अपने प्रिय दोस्त को देख रहा था वह आँखें पथराई की पथराई रह गयी। उसका शरीर निढाल हो चुका था। इस प्रकार हरवंश और अमीर चन्द की नब्बे बरस पुरानी दोस्ती हमेशा-हमेशा के लिए टूट गयी। उसका अज़ीम दोस्त इस दुनिया से जा चुका था और छोड़ गया था। अपने बचपन,जवानी और बुढ़ापे की स्मृति शेष बनकर हरवंश की आँखों की पोर से आँसूओं के रूप में अमीर चन्द को श्रृद्धाजंलि दे रही थी।
भूपेन्द्र डोंगरियाल
08/08/2022

bhupendradongriyal द्वारा प्रकाशित

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