जनरेशन गैप (लघुकथा)

कुछ देर पहले ही वह दुकान में आया था। जैसे ही उसकी नज़र मेरे ऊपर पड़ी उसने अजीब सा मुँह बनाकर मुझे गुड मॉर्निंग कहा और फिर दुकानदार के कान में कुछ कहकर वह बाहर खड़ा हो गया। मैंने दुकानदार से पूछा, “क्या बात है,यह लड़का तुमसे कुछ खास सीक्रेट कह रहा था क्या”?
        दुकानदार ने हँसते हुए कहा, “यह लड़का आपका स्टूडेंट है क्या? शायद इसीलिए इतनी अदब करता हो आपकी”।
        मैंने कहा, “नहीं-नहीं,ये तो मेरा स्टूडेंट नहीं है लेकिन इसके पिताजी को किसी जमाने में मैं मुफ़्त में ट्यूशन पढ़ाता था”।
           दुकानदार ने हँसते हुए कहा, “गुरुजी आप भी अच्छा मज़ाक कर लेते हैं। इस लड़के के पिता तो आपसे उम्र में बहुत बड़े हैं तो आप उनको कैसे ट्यूशन पढ़ाते थे”?
       मैंने कहा, “ये भी एक सीक्रेट है,दरअसल इसके पिताजी पहले डीग्रेड के कर्मचारी थे और डी ग्रेड से सी ग्रेड में प्रमोशन चाहते थे”।
         दुकानदार ने कहा, “आपको तो इस डीग्रेड,सीग्रेड का अच्छा ज्ञान है। तभी आप सही समझे कि यह लड़का मुझसे सीग्रेड लेने ही आया था। मैंने कई बार समझाया तो कहने लगा आपका काम माल बेचना है। पीने वाले तो कहीं से भी पी लेंगे”।
        मैंने सिर खुजलाते हुए कहा, “लाला जी उसने जो कहा वो भी सही कहा। मैंने जो कहा वह भी सही कहा और आपने जो समझा वह भी सही समझा। बस सीक्रेट से शुरू हुई हमारी बात सीग्रेट की ओर बढ़ते-बढ़ते सीगरेट तक पहुँच गयी। बस आप यह समझिए कि आजकल के रिश्तों के जनरेशन गैप की तरह यह भी एक तरह शब्दों का जनरेशन गैप ही है”। मेरी बात सुनकर दुकानदार मेरे चेहरे की ओर देखकर जोर-जोर से हँसने लगा।

भूपेन्द्र डोंगरियाल
20/05/21

bhupendradongriyal द्वारा प्रकाशित

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